AMAN AJ

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आई नोट , भाग 45

    

    अध्याय 8
    शुरुआत में 
    भाग-4
    
    ★★★
    
    सड़क पर दौड़ने वाला लड़का बड़ा हो चुका था। वह किसी रेस्टोरेंट में अपने ठीक सामने तवे पर कोई डिस बना रहा था। उसका चेहरा क्लीन शेव था। बाल बड़े और एक दूसरे में उलझे हुए थे। उसने कुकिंग ड्रेस पहन रखी थी। 
    
    “दिन बदलते हैं तो इंसान बदलता है। इंसान बदलता है तो उसके दिखने का अंदाज, उसके रहने का अंदाज़, उसके बात करने का अंदाज बदलता है। नॉर्मल शब्दों में कहूं तो सब बदलता है।”
    
    सामने कोई लड़की आई और उसने डिस की डिमांड की। लड़के ने मुस्कुराहट दिखाकर हामी भरी और एक लिफाफे में डिस पैक करने लगा। डिस पैक करने के बाद उसने उसे लड़की को दे दिया। लड़की ने वह डिस ली और वहां से जाने लगी।
    
    “मगर इन सबके बीच अगर कुछ नहीं बदलता तो वह है इंसान का मकसद। अगर उसे किसी चीज को पाने की चाहत है तो वह तब तक आराम से नहीं बैठ सकता, जब तक उसे पा ना लें।”
    
    लड़के ने अपने हाथ अपनी कुकिंग ड्रेस से साफ किए और फिर उसे उतार कर बाहर आ गया। बाहर आने के बाद वह उस लड़की का पीछा करने लगा जो उससे डिस खरीद कर लेकर गई थी।
    
    “मुझे मेरे घर के बाहर रहने वाली लड़की की तलाश आज भी थी। मैं अच्छे से जानता था, दुनिया चाहे कितनी भी बड़ी क्यों ना हो जाए, अगर किसी चीज की शिद्दत से तलाश की जाए तो इंसान उसे हासिल कर ही लेता है।”
    
    कुछ देर बाद लड़का उसे घर पर स्टाॅक करता हुआ दिखा। लड़की घर के अंदर थी और लड़का बाहर सड़क पर खड़े होकर उसे देख रहा था। कांच की खिड़की से लड़की कभी-कभी चहल कदमी करते हुए दिखाई दे जाती थी। 
    
    “किसी चीज को हासिल करने का प्रोसेस अलग-अलग कंडीशन के हिसाब से अलग-अलग होता है। कभी हमें वह जल्दी मिल जाती हैं, तो कभी हमें मेहनत करनी पड़ती है।”
    
    अगले दिन वह लड़की फिर से डिश लेने आई मगर इस बार उसके साथ उसका बॉयफ्रेंड भी था। लड़की उसके साथ खुश दिखाई दे रही थी। लड़के ने डिश पैक की और लड़की को देते हुए बॉयफ्रेंड को ठंडी नजरों से देखा। यह दृश्य भी स्लो मोशन में थे।
    
    “ऐसा नहीं कि इस दौरान आपके सामने रुकावटें नहीं आती। रुकावटें आती हैं। भर भर कर आती है। मगर किसी चीज को हासिल करने वाले इंसान को पता होता है उन रुकावटों से निकला जाए।”
    
    उसी दिन रात में लड़का किसी अंधेरे बेसमेंट में बंधा पड़ा था। वह अपनी हर संभव कोशिश कर खुद को आजाद करने की कोशिश कर रहा था मगर रस्सियों की पकड़ उसे आजाद नहीं होने दे रही थी। उसके ठीक सामने लड़का खड़ा था। अपने हाथ में एक सुराख निकालने वाले ग्रेंडर लिए।
    
    “मेरे लिए तो यह बिल्कुल भी मुश्किल नहीं रहता था। किसी की जान लेना मेरे लिए मुर्गी के अंडे तोड़ने जैसा था। शायद उससे भी आसान, मुर्गी का अंडा तोड़ते वक्त भी एक गिन सी आती थी, मगर जान लेते वक्त मुझे ऐसा कुछ भी नहीं होता था।”
    
    लड़के ने ग्रेंडर चालू किया और आगे की ओर बढ़ने लगा। जैसे-जैसे वो आगे बढ़ रहा था वैसे वैसे सामने का लड़का चिल्लाकर छटपटा रहा था। वह उसके करीब आया और ग्रेंडर सीधे उसकी छाती के बीचोबीच रखकर उसे चला दिया।
    
    “मेरे बचपन ने मुझे जो बनाया मैं उसका अंजाम देख रहा था। लेकिन जब एक इंसान बुरा बन जाता है तो उसके पास बुरे रहने के अलावा और कोई रास्ता नहीं होता। फिर तो उसे हर एक समस्या का हल भी सिर्फ और सिर्फ खुद को बुरा बना कर ही दिखाई देता है।”
    
    3 दिन बाद वह उसी लड़की के साथ बिस्तर पर था। उसके चेहरे पर शातिर मुस्कान थी।
    
    “कामयाबी मिलने के बाद खुशी मिलती है। यह खुशी मुझे मेरे अंदर के उस दर्द को मुझसे दूर रखती थी जो मुझे हंटर की मार से मिला था। मैं अब उस वजह बारे में भी नहीं सोचता था जिसकी वजह से मेरे मां बाप में झगड़ा हुआ था। वह लड़की, जो मेरे घर के बाहर रहती थी उसने मेरी दुनिया बदल दी थी।”
    
    तभी लड़के ने बेड के पास पड़े टेबल पर हाथ मारा। वहां उस्तरा पड़ा था जिसे उसने अपने हाथ में ले लिया। 
    
    “इसलिए अफसोस होता था जब मुझे पता चलता था कि मेरी तमाम कोशिशों के बावजूद मैं उस लड़की को हासिल नहीं कर पाया जिसे हासिल करना था। यह चीज मुझे खुश करने के बाद वापिस निराशा से भर देती थी। ऐसी निराशा से जिसमें मेरे चारों ही और बस अंधेरा ही अंधेरा होता था।”
    
    उसने उस्तरे को अपने हाथ में लिया, तेजी से हरकत की, लड़की के मुंह को दबाया, और उस्तरा उसकी गर्दन पर रख दिया। एक ही झटके में लड़की बड़ी बड़ी आंखों के साथ लड़के को देखने लगी। लड़के ने उस्तरा धीरे से उसके गले पर रखा और चला दिया। 
    
    लड़की को मारने के बाद उसने अपने कपड़े पहने और घर से बाहर आ गया। घर से बाहर आने के बाद वह सड़क पर एक कार की तरफ जाने लगा जो पीले रंग की थी और उसी लड़की की थी जिसे वह मार कर आया था। वह कार में बैठा और उसे सड़क पर दौड़ा लिया।
     
    “मैं ना तो खुद को दुखी होने दे सकता था, ना ही हार मान सकता था। अगर इंसान एक बार कोशिश करने के बाद कामयाब नहीं होता तो उसे दोबारा कोशिश करनी चाहिए। थॉमसन ने जब बल्ब का आविष्कार किया था तब कुल 999 बार कोशिश की थी, अपनी इतनी कोशिशों के बाद उसे बल्ब बनाने में कामयाबी मिली थी। जबकि मेरा आंकड़ा तो अभी 178 पर ही पहुंचा था।”
    
    उसी रात लड़का किसी से कार का सौदा कर रहा था। कार का सौदा फिक्स हुआ और उसे नोट के चार बंडल पकड़ा दिए गए। लड़के ने चारों नोट के बंडल पकड़ लिए।
    
    “178 लड़कियों को देखने के बाद मुझे पता चला मेरी तलाश अभी और भी लंबी चलने वाली है। यह तलाश किसी एक मोहल्ले, किसी एक कस्बे, किसी एक इलाके या किसी एक शहर तक सीमित नहीं रहने वाली थी। यह तलाश अलग-अलग शहर तक भी जाने वाली थी।”
    
    उसी रात लड़का बेसमेंट में गया और वहां एक कमरे का दरवाजा खोला। दरवाजे की दूसरी ओर लोहे की अलमारीयों से भरी दिवार थी। नोटों के बंडल से भरी लोहे की अलमारियों की दीवार। उसने अपने हाथ में मौजूद चार नोटों के बंडल को भी उसी अलमारी में रख दिया। 
    
    “मेरे पास किसी भी चीज की कमी नहीं थी। किसी भी चीज की नहीं। बस बात यह थी कि मैं इनका इस्तेमाल नहीं कर सकता था। मुझे जो चीज चाहिए थी उसे हासिल करने तक तो बिल्कुल भी नहीं। वह अगर मुझे एक शहर में नहीं मिलती थी तो मुझे दूसरे शहर को अपनाना पड़ता था।”
    
    अगले दिन वह रेस्टोरेंट के बाहर कुछ और आदमियों से सौदा कर रहा था। सौदे के बाद उसे नोटों से भरी एक अटैची दे दी गई। अटैची लेने के बाद वो किसी ऐसी जगह पर था जो समंदर के किनारे बनी हुई थी और अपने सामने मौजूद किसी गंजे आदमी से बात कर रहा था। गंजे आदमी ने उसे कुछ आईडी कार्ड वीजा पासवर्ड दिए और लड़के ने उसे नोटों से भरी अटैची दे दी थी।
    
    “शहर बदलना कभी भी आसान नहीं रहता। खासकर मेरे लिए। शहर बदलने से पहले मुझे काफी सारे काम करने पड़ते थे। अपने पुरानी पहचान को बदलकर नई पहचान बनानी पड़ती थी। प्रॉपर्टी जो कि मेरी नकली पहचान के नाम होती थी, मुझे उसे पूरी तरह से बैचना पड़ता था।”
    
    लड़का उसी समंदर के किनारे अपनी आईडी कार्ड को देख रहा था। उस आईडी कार्ड उसकी फोटो लगी हुई थी। नाम पहचान सब अलग था।
  
    “मैं क्या कुछ नहीं बना। एक डॉक्टर, अब बिना डिग्री के डॉक्टर बनना भी अपने आप में महान काम था। एक इंजीनियर, जिसके लिए भी मैंने कोई डिग्री नहीं ली थी। एक सीधा-साधा घर में रहने वाला इंसान। चपरासी की नौकरी करने वाला इंसान। आइसक्रीम की दुकान का मालिक। और रेस्टोरेंट्स, वह तो मेरा फेवरेट था। एक रेस्टोरेंट शहर की अच्छी खासी भीड़ को जुटाता था।”
    
    उसी दिन शाम को लड़के ने बेसमेंट के अंदर जिस कमरे में नोटों से भरी अलमारीयों को रख रखा था, उसके बाहर व्हाईट पेपर चिपकाया और उसे ऐसा कर दिया जैसे मानो वहां कमरा नहीं बल्कि किसी तरह की दीवार है। इसके बाद उसने शटर गिराया और उसे बंद कर उसके आगे ताला लगा दिया। ताला लगाने के बाद वह कार में बैठा और चल पड़ा। कुछ ही देर में उसकी कार एक हाईवे पर चल रही थी जो किसी और शहर की ओर जा रहा था।
    
    “अपने सफ़र में मुझे पीछे जो भी हासिल होता था मैं उसे पीछे ही छोड़ आता था। बस जरूरत का कुछ अपने साथ जरूर ले लेता था जो आगे नए सफर में मेरे काम आए। मैं अपने हर सफर में इतना कुछ हासिल करता था, जितना किसी इंसान को हासिल करने में सदियां लग जाती थी। फिर अगर बुरा था, तो मैं अपने इस बुरे किरदार को अच्छे से निभाता था। ठीक ऐसे जैसे कोई अपनी कहानी में अपने हीरो के किरदार को अच्छे से निभाता है।”
    
    नए शहर में आने के बाद वह किसी बिल्डिंग के सामने खड़ा था।
    
    “मुझे मेरी छंद कामयाबी में मिली हैसियत का इस्तेमाल करने की आदत नहीं थी। हैसियत और दिखावे में कुछ भी नहीं पड़ा था। अगर आप हैसियत दिखाते हो तो हाईलाइट होते हो। मेरे जैसा इंसान, जिसे हर दूसरे दिन अपनी पहचान बदलनी पड़ती थी वह हाईलाइट होने का जोखिम नहीं उठा सकता था।”
    
    उसने बिल्डिंग के किसी मोटे से आदमी के साथ सौदा किया और उसकी एक मंजिल पर अपना घर ले लिया। घर लेने के बाद वह ऊपर गया और दरवाजा खोलकर घर को देखा। पूरे के पूरे घर में कहीं चूहे घूम रहे थे तो कहीं मकड़ियों के जाले बने पड़े थे।
    
    “मेरे इस आदत ने मुझे अपना काम भी खुद करने की आदत डाल दी। खुद सब कुछ करना इतना भी बोरिंग नहीं लगता था, जितना कि आमतौर पर लोगों को लगता है।”
    
    अगले ही पल में वह कैपरी और एक साधी टी-शर्ट में घर की सफाई कर रहा था।
    
    “यह जिंदगी मजेदार है, और इसके छोटे-छोटे कामों में जो मजा आता है मैं उसे पूरी तरह से एंजॉय करता था। यह चीज मुझे सुकून देती थी।”
    
    कमरे को साफ करने के बाद उसने अपने लिए जूस बनाया और डाइनिंग टेबल के पास पड़ी कुर्सी पर आकर बैठ गया। वहां उसने अपना आईडी कार्ड निकाला जिस पर उसका प्रोफेशन लिखा हुआ था। उसने अपना वर्क प्रोफेशन पढ़ा और हैरानी वाला मुंह बनाया।
    
    “मगर ऐसा मुझे तब तक लगा जब तक मुझे यह पता नहीं चला लेखक नाम की कोई चीज भी इस दुनिया में है। एक साधारण प्रोफेशन,शायद सबसे घटिया, या फिर सबसे वाहियात, मगर एक सुकून देने वाला प्रोफेशन। इसके भी अपने अलग मजे थें। मैं अपने रेस्टोरेंट के प्रोफेशन को भी नहीं छोड़ सकता था, क्योंकि उस लड़की की तलाश के लिए मेरे पास बस वही रास्ता था। एक ऐसा रास्ता जिसने मुझे उम्मीद थी, इस बात की उम्मीद वो लड़की एक ना एक दिन मुझे मिलेगी।”
    
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